इस एपिसोड में हम आपको बताएँगे, अपने वजूद पर अशुभ होने की मुहर लगने के बाद किस तरह रामबोला भटकते हुए जंगल तक आ पहुँचे, किस तरह इस भटकन के दौरान उनकी मुलाकात प्रभु श्री राम के भक्त गुरु नरहरी दास जी से हुई, जिन्होंने रामबोला का हाथ थामा और उन्हें अपने साथ अयोध्या ले आए। हम आपको बताएँगे किस तरह रामबोला को तुलसीदास नाम मिला। तुलसीदास जी का जन्म, आज से लग-भग 490 बरस पहले, 1532 ईसवी में उत्तर प्रदेश के एक गाँव में हुआ और उन्होंने अपने जीवन के अंतिम पल काशी में गुज़ारे। पैदाइश के कुछ वक़्त बाद ही तुलसीदास महाराज की वालिदा का देहांत हो गया, एक अशुभ नक्षत्र में पैदा होने की वजह से उनके पिता उन्हें अशुभ समझने लगे, तुलसीदास जी के जीवन में सैकड़ों परेशानियाँ आईं लेकिन हर परेशानी का रास्ता प्रभु श्री राम की भक्ति पर आकर खत्म हुआ। राम भक्ति की छाँव तले ही तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस और हनुमान चालीसा जैसी नायाब रचनाओं को जन्म दिया। ये अफ़साना तुलसीदास महाराज के व्यक्तित्व और महत्व को ध्यान में रखते हुए, उनकी ज़िंदगी के तथ्य और सत्य पर गढ़ा गया है। Goswami Tulsidas Maharaj was born about 490 years ago in 1532 AD, in a village in Uttar Pradesh and he spent the last moments of his life in Kashi, known as Varanasi today. His mother passed away shortly after his birth and his father considered him inauspicious because of being born in an ominous constellation. He faced hundreds of troubles in his life but the path of every trouble lay on the devotion of Lord Shri Ram. Tulsidas gave birth to unique creations like Shri Ramcharitmanas and Hanuman Chalisa under the shadow of Ram Bhakti. This story has been created on the facts and truth of Tulsidas Maharaj's life, keeping in mind the personality and role he played in people’s lives. To know more about Kewal Kapoor and Tulsidas Ji Ki Katha , Follow @kewalkapoor on Youtube, Twitter, Instagram and Facebook